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Showing posts from October, 2007

अगर औरत की शक्ल में कार हो

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सत्येन्द्र प्रताप संयुक्त राज्य अमेरिका के नेवादा में सेमा नाम से कार की प्रदर्शनी का आयोजन किया जाता है। यह दुनिया की सबसे बड़ी प्रदर्शनी मानी जाती है। हालांकि मनुष्य के हर रूप को बाजार ने भली भांति पहचाना है, लेकिन अगर कार के रुप में किसी महिला को देखा जाए तो तस्बीर कुछ इसी स्टेच्यू की तरह उभरेगी। शायद इसी सोच के साथ प्रदर्शनी के आयोजकों ने कार के पार्टस से महिला की स्टेच्यू बना डाली। आप भी औरत के विभिन्न अंगों की तुलना कार-पार्टस् से करके लुफ्त उठा सकते हैं???

देख लो भइया, ये हाल है तुम्हारी दुनिया का

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चीन के बीजिंग शहर में प्रदूषण का धुंध इस कदर छा गया है कि सड़क पर खड़े होकर बहुमंिजली इमारत का ऊपरी हिस्सा देखना मुश्किल हो गया है। चीन में अगले साल ओलंपिक खेल होने जा रहा है और उससे जुड़े अधिकारियों ने उद्योगों से होने वाले वायु प्रदूषण पर चेतावनी भी दी है।

सबूत लपेटकर फांसी पर लटकाया

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सीरियाः अलेपो के उत्तरी शहर में १८ से २३ साल के पांच युवकों को सार्वजनिक रूप से फांसी पर लटकाया गया।ये टुवक हत्या के मामले में दोशी पाए गए थे। फांसी पर लटकाए गए युवकों के शरीर पर उनके अपराधों के बारे में विस्तृत रूप से लिखकर लपेट दिया गया था।

बीड़ी जलइले िजगर से पिया....

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शिक्षा के निजीकरण के िवरोध में सड़कों पर उतरे छात्र-छात्राओं का अनोखा विरोध

आजा, आ....... लड़ेगा क्या

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स्लोवािकय का छह सप्ताह का बिल्ली का बच्चा , खेलते हुए

पत्रकार का प्रेमपत्र

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सत्येन्द्र प्रताप सामान्यतया प्रेमपत्रों में लड़के -लड़िकयां साथ में जीने और मरने की कसमें खाते हैं, वादे करते हैं और वीभत्स तो तब होता है जब पत्र इतना लंबा होता है िक प्रेमी या प्रेिमका उसकी गंभीरता नहीं समझते और लंबे पत्र पर अिधक समय न देने के कारण जोड़े में से एक भगवान को प्यारा हो जाता है. अगर पत्रकार की प्रेिमका हो तो वह कैसे समझाए। सच पूछें तो वह अपने व्यावसाियक कौशल का प्रयोग करके कम शब्दों में सारी बातें कह देगा और अगर शब्द ज्यादा भी लिखने पड़े तो खास-खास बातें तो वह पढ़वाने में सफल तो हो ही जाएगा. पहले की पत्रकािरता करने वाले लोग अपने प्रेमपत्र में पहले पैराग्राफ में इंट्रो जरुर िलखेंगे. साथ ही पत्र को सजाने के िलए कैची हेिडंग, उसके बाद क्रासर, अगर क्रासर भी लुभाने में सफल नहीं हुआ तो िकसी पार्क में गलबिहयां डाले प्रेमिका के साथ का फोटो हो तो वह ज्यादा प्रभावी सािबत होगा और प्रेमिका के इमोशन को झकझोर कर रख देगा. नया अखबारनवीस होगा तो उसमें कुछ मूलभूत परिवर्तन कर देगा. पहला, वह कुछ अंगऱेजी के शब्द डालेगा िजससे प्रेमिका को अपनी बात समझा सके. समस्या अभी खत्म नहीं हुई क्योंिक वक

चलना है

रतन उम्र भर रात-दिन औ सुबहो-शाम चलना है ये जिन्दगी है सफर याँ मुदाम चलना है ये हैं तकदीर की बातें नसीब का लिखा किसी को तेज किसी को खिराम चलना है लाख रोके से रुकेगा नहीं इंसान यहाँ जब भी आया है खुदा का पयाम चलना है नहीं है एक कोई दुनिया से जाने वाला आज मैं कल वो इस तरह तमाम चलना है गलत किया है नहीं गर खता हुई हो कभी माफ़ करना मुझे सब राम-राम चलना है ज्यों यहाँ हम रहे खुशहाल वहाँ भी यों रहें लबों पे लेके खुशनुमा कलाम चलना है रतन हैं साथ सफर होगी हंसी अहले-जहाँ कुबूल कीजिए मेरा सलाम चलना है

पहला आर्यसत्य

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इष्ट देव सांकृत्यायन राजकुमार सिद्धार्थ पहली बार अपने मंत्री पिता के सरकारी बंगले से बाहर निकले थे. साथ में था केवल उनका कार ड्राइवर. चूंकि बंगले से बाहर निकले नहीं, लिहाजा दिल्ली शहर के तौर-तरीक़े उन्हें पता नहीं चल सके थे. कार के बंगले से बाहर निकलते ही, कुछ दूर चलते ही रस्ते में मिला एक साईकिल सवार. हवा से बातें करती उनके कार के ड्राईवर ने जोर का हार्न लगाया पर इसके पहले कि वह साईड-वाईड ले पाता बन्दे ने गंदे पानी का छर्रा मारा ....ओये और 'बीडी जलाई ले जिगर से पिया ........' का वाल्यूम थोडा और बढ़ा दिया. इसके पहले कि राजकुमार कुछ कहते-सुनते ड्राईवर ने उन्हें बता दिया, 'इस शहर में सड़क पर चलने का यही रिवाज है बेबी.' 'मतलब?' जिज्ञासु राजकुमार ने पूछा. 'मतलब यह कि अगर आपके पास कार है तो आप चाहे जितने पैदल, साइकिल और बाइक सवारों को चाहें रौंद सकते हैं.' ड्राइवर ने राजकुमार को बताया. कार थोड़ी और आगे बढ़ी. ड्राइवर थोडा डरा. उसने जल्दी से गाडी किनारे कर ली. मामला राजकुमार की समझ में नहीं आया. 'क्या हुआ?' उन्होने ड्राइवर से पूछा. 'अरे कुछ नहीं राजक

दीवार की काई की तरह

- विनय ओझा 'स्नेहिल' अपनी उम्मीद है दीवार की काई की तरह। फिर भी ज़िन्दा है खौफ़नाक सचाई की तरह॥ पेट घुटनों से सटा करके फटी सी चादर - ओढ़ लेता हूँ सर्दियों में रजाई की तरह ॥ आँधियाँ गम की और अश्कों की उसपर बारिश - साँस अब चलती है सावन की पुरवाई की तरह ॥ जाने यह कौन सी तहज़ीब का दौर आया है- बात अब अच्छी भी लगती है बुराई की तरह ॥ सारी जनता तो उपेक्षित है बरातीयों सी - और नेताओं की खातिर है जमाई की तरह ॥

अशआर

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- विनय ओझा स्नेहिल मुस्कराहट पाल कर होंठों पे देखो दोस्तों- मुस्करा देगा यकीनन गम भी तुमको देखकर. थाम लेगा एकदिन दामान तुम्हारा आस्मां - थोड़ा थोड़ा रोज़ तुम ऊँचा अगर उठते रहे. यह और है कि हसीनों के मुँह नहीं लगते- वरना रखते हैं जिगर हम भी अपने सीने में. पाँव में ज़ोर है तो मिल के रहेगी मंज़िल - रोक ले पाँव जो ऐसा कोई पत्थर ही नहीं.

कहाँ मिलता है!

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विनय ओझा स्नेहिल हर एक शख्स बेज़ुबान यहाँ मिलता है. सभी के क़त्ल का बयान कहाँ मिलता है. यह और बात है उड़ सकते हैं सभी पंछी फिर भी हर एक को आसमान कहाँ मिलता है. सात दिन हो गए पर नींद ही नहीं आयी दिल को दंगों में इत्मीनान कहाँ मिलता है. न जाने कितनी रोज़ चील कौवे खाते हैं हर एक लाश को शमशान कहाँ मिलता है.

ट्रांस्पैरेंसी इंटरनेशनल की हेराफेरी

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इष्ट देव सांकृत्यायन व्यंग्य चित्र : श्याम जगोता मास्टर एकदम से फायर है. सलाहू से उसने पूछा है कि अंतरराष्ट्रीय मामलों में मानहानि के मुकदमों की सुनवाई कहाँ होती है और इनके लिए याचिका कैसे लगाई जा सकती है. बेचारा सलाहू अभी हाई कोर्ट से आगे तो जा नहीं पाया. सुप्रीम कोर्ट का मुँह तो जरूर देखा है लेकिन भीतर घुसने की अभी तक तो उसे अनुमति मिली नहीं. सोच रहा है कैसे समझाए मास्टर को. सलाहू उसे समझाने की वैसे तो बहुतेरी कोशिशें कर चुका है कि इन सब झमेलों में मत पड़ो. पर जो समझ ही जाए वो मास्टर भला किस बात का? असल में राष्ट्रीयता की भावना मास्टर में कूट-कूट कर भरी है और यह भावना उसमें भरी है उसके परमपूज्य पिताश्री ने, जो तहसील के मुलाजिम हुआ करते थे। वे पूरे देश की सम्पत्ति को अपनी सम्पत्ति समझते थे। सरकारी जमीनों को तो धेले के भाव किसी के भी नाम करते उन्हें कभी डर लगा ही नहीं, कमजोर लोगों की जमीन दबंगों और दबंगों की जमीन उनसे ज्यादा दबंगों या समझदार लोगों की लोचेदार जमीन बेवकूफों के नाम करने में भी वे कभी हिचकिचाए नहीं। दूसरे हलकों के लोग भी अभी तक बच्कन लाल पटवारी का उदाहरण देते नहीं थकते और

आस्था का सवाल

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हरिशंकर राढ़ी एक बार आस्था फिर बाहर आ गयी है. लड़ने का मूड है उसका इस बार. इस बार उसकी लडाई इतिहास से है. यों तो इतिहास लडाई एवं षड्यंत्र का ही दूसरा नाम है, पर यह लडाई कुछ अलग है. लड़ने चली तो आई पर हथियार के नाम पर बेहया का एक डंडा भी नहीं है. यहाँ तक कि यदि पिट-पिटा गई तो ऍफ़आईआर दर्ज़ कराने के लिए एक किता चश्मदीद गवाह भी नहीं है. उसकी ओर से खड़ा होकर कोई यह भी कहने वाला नहीं है कि मैने राम को देखा है. उन्होने समुद्र में सेतु बनाया ,यह तो दूर की बात है. सच भी है. पहले तो उन्हें देखने की किसी ने कोशिश ही नहीं की, अगर किसी ने दावा कर भी दिया तो लोग उसे पागल समझेंगे. दूसरी तरफ इतिहास है. वैज्ञानिक दृष्टिकोण लेकर आया है. विदेशी है सो अच्छा होगा ही. उसके चलन-कलन मे कोई गलती हो ही नहीं सकती. गलती हो भी जाए तो परिहार है -सॉरी. अभी गलती से अमेरिका आस्था की गवाही में बोल पड़ा कि समुन्दर के अन्दर एक पुराना पुल पड़ा हुआ है. उसे पता नहीं था कि राम सेतु की पक्षधर पार्टियां सत्ता में नहीं हैं. सो जल्दी से सॉरी बोल दिया। इस टीप के साथ कि पुल मानव निर्मित नहीं है. यही बात तुलसी बाबा भी बोले, भारत की

बर्मा में ब्लॉगर्स पर पहरा और हमारे लिए इसका मतलब?

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- दिलीप मंडल बर्मा यानी म्यांमार में सरकार ने इंटरनेट कनेक्शन बंद कर दिए हैं । इससे पहले वहां की सबसे बड़ी और सरकारी इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर कंपनी बागान साइबरटेक ने इंटरनेट कनेक्शन की स्पीड इतनी कम कर दी थी कि फोटो अपलोड और डाउनलोड करना नामुमकिन हो गया । साथ ही साइबर कैफे बंद करा दिए गए हैं । बर्मा के ब्लॉग के बारे में ये खबर जरूर देखें - Myanmar's blogs of bloodshed बर्मा में फौजी तानाशाही को विभत्स चेहरा अगर दुनिया के सामने आ पाया तो इसका श्रेय वहां के ब्लॉगर्स को ही जाता है । वहां की खबरें , दमन की तस्वीरें बर्मा के ब्लॉगर्स के जरिए ही हम तक पहुंचीं । बर्मा में एक फीसदी से भी कम आबादी की इंटरनेट तक पहुंच है । फिर भी ऐसे समय में जब संचार के बाकी माध्यम या तो सरकारी कब्जे में हैं या फिर किसी न किसी तरह से उन्हें चुप करा दिया गया है , तब बर्मा के ब्लॉगर्स

कोई कहाँ है अपना

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रतन सभी अपने हैं मगर कोई कहॉ है अपना यों तो कहने के लिए सारा जहाँ है अपना लोग कहते हैं कि तुम दिल में मेरे रहते हो सच यही है कि नहीं कोई मकां है अपना लोग जो करते हैं ओ जानें करम है उनका यह जनम अगला जनम उनपे फ़ना है अपना वो न समझें वो न जानें कोई गुस्ताखी नहीं ग़लत-सही हो जान उनपे फ़िदा है अपना आपसा हमने उन्हें माना जो थे आपके लोग जिनके बारे में बताया कि फलां है अपना भूल जाये ये जहाँ खत्म हो जाये दुनिया ख़त्म होगा नहीं वो नामो-निशां है अपना यकीन तुम न करो पर है यही सच्चाई कि रतन अलग सा अंदाजे बयाँ है अपना

मोगाम्बो खुश हुआ!

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इष्ट देव सांकृत्यायन कई दिनों पहले की बात है मैने एक ब्लॉगर भाई अनिल रघुराज के ब्लॉग पर एक पोस्ट पढी थी. पोस्ट बहुत महत्वपूर्ण जानकारी से भरा था. जानकारी यह थी कि अपना यूंपी यानी उल्टा प्रदेश ... माफ़ कीजिए ...सरकारी कागज़-पत्तर में उत्तर प्रदेश पढाई-लिखाई में भले फिसड्डी हो, लेकिन पढे-लिखे अपराधियों के मामले में अव्वल है। अपनी साक्षरता दर के मामले में यह देश के 30 राज्यों में छब्बीसवें नंबर पर है, लेकिन पढे-लिखे अपराधियों के मामले में अली दा पहला नंबर है. भाई अनिल रघुराज का पोस्ट पढ़ कर तो ऐसा लग रहा था जैसे वो कुछ-कुछ खिन्न से हों. बेशक मुझ जैसे तमाम ब्लागरों ने वह पोस्ट पढी होगी और जैसी कि रीति है लेखक से प्रभावित होते हुए वे भी दुखी हुए होंगे. लेकिन भाई, कोई जरूरी तो है नहीं कि हर आदमी परम्परा के अनुसार ही चले. कुछ लोग परम्परा के विपरीत चलने के लिए ही बने होते हैं तो क्या करें? असल में ऐसा मैं कोई जान-बूझ कर नहीं हूँ. बाई डिफाल्ट हूँ. आप चाहें तो कह सकते हैं मैनुफैक्चरिंग डिफेक्ट हैं. तो सबसे पहले तो इस डिफेक्ट के लिए मैं अनिल भाई से माफी चाहता हूँ. अब ईमानदारी से कबूल करता हूँ कि

स्कूप से कम नहीं रामकहानी सीताराम

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सत्येन्द्र प्रताप मधुकर उपाध्याय की 'राम कहानी सीताराम' एक ऐसे सिपाही की आत्मकथा है जिसने ब्रिटिश हुकूमत की ४८ साल तक सेवा की. अंगऱेजी हुकूमत का विस्तार देखा और आपस में लड़ती स्थानीय रियासतों का पराभव. सिपाही से सूबेदार बने सीताराम ने अपनी आत्मकथा अवधी मूल में सन १८६० के आसपास लिखी थी जिसमें उसने तत्कालीन समाज, अपनी समझ के मुताबिक़ अंग्रेजों की विस्तार नीति, ठगी प्रथा, अफगान युद्ध और १८५७ के गदर के बारे में लिखा है. अवधी में लिखी गई आत्मकथा का अंग्रेजी में अनुवाद एक ब्रिटिश अधिकारी जेम्स नारगेट ने किया और १८६३ में प्रकाशित कराया. अंग्रेजी में लिखी गई पुस्तक फ्राम सिपाय टु सूबेदार के पहले सीताराम की अवधी में लिखी गई आत्मकथा इस मायने में महत्वपूर्ण है कि गद्य साहित्य में आत्मकथा है जो भारतीय लेखन में उस जमाने के लिहाज से नई विधा है. सीताराम ने अपनी किताब की शुरुआत उस समय से की है जब वह अंग्रेजों की फौज में काम करने वाले अपने मामा के आभामंडल से प्रभावित होकर सेना में शािमल हुआ। फैजाबाद के तिलोई गांव में जन्मे सीताराम ने सेना में शामिल होने की इच्छा से लेकर सूबेदार के रूप में पें

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