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Showing posts from February, 2010

फागुन आया रे!

मेरे एक कवि मित्र ने घोषणा की है – फागुन आया रे! कब आया, कहां से आया, किस रास्ते आया, किसके मार्फ़त आया और कब तक ठहरेगा... इन सवालों का उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया है. सीधे काम की बात पर आ गए. सबसे पहले सीधे यही बता दिया कि किसलिए आया है. एकदम दिल्ली वालों की तरह. गोया फागुन के आने की सूचना सिर्फ़ दिल्ली वालों के लिए है. बल्कि सही पूछिए तो ‘ आपके लिए आपके साथ सदैव ’ का नारा देने वाली दिल्ली पुलिस के लिए. जो थाने में ख़ून से लथपथ आदमी की भी शक्ल देखते ही सीधा सवाल करती है, ‘ हां बोलो ’ . तो किसी को यह पूछने की ज़रूरत नहीं कि वह किसलिए आया है. उसके इरादे उन्होंने पहले ही ज़ाहिर कर दिए हैं. और जो इरादे उन्होंने ज़ाहिर किए हैं, वह बिलकुल नेक नहीं लगते. बहरहाल, फागुन नंगा-लुच्चा-उचक्का-लफंगा जो भी हो, पर मेरे कवि मित्र पूरे ईमानदार हैं. तो उन्होंने बताया है- गोरी को बहकाने फागुन आया रे. हालांकि एक जगह उन्होंने यह भी कहा है कि वह प्रेम रस बरसाने आया है, पर अगले ही बन्द में फिर स्पष्ट कर दिया है – तन-मन को भरमाने फागुन आया रे. अब अगर ग़ौर करें तो मालूम होता है कि ये प्रेम रस बरसाने वाला फाग

चाहिए कुछ भी नहीं

चाहिए कुछ भी नहीं तुमसे मुझे न सांसों की सरगम न आने की आहट न धुंध खयालों का न अहसास रहगुजर सा शहनाई भी नहीं रानाई भी नहीं परछाई भी नहीं तनहाई भी नहीं रुसवाई भी नहीं तुम सोचते होगे यह क्या चाहिए है मुझको बस साथ इस तरह से मिलता रहे तुम्हारा जब जी में आए देखूं जब जी करे भुलाऊं तुम राह में न आओ मैं तुमको गुनगुनाऊं देना है अगर साथ मेरा इस तरह तुम्हें तब ही तो मैं कुछ कर सकूंगा अपने लिए, तेरे लिए, जग के लिए चाहिए कुछ भी नहीं तुमसे मुझे

फाल्गुन आया रे !

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गोरी को बहकाने फाल्गुन आया रे । रंगों के गुब्बारे फूट रहे तन आँगन, हाथ रचे मेंहदी के याद आते साजन ॥ प्रेम-रस बरसाने फाल्गुन आया रे । यौवन की पिचकारी चंचल सा मन, नयनों से रंग कलश छलकाता तन ॥ तन-मन को भरमाने फाल्गुन आया रे । [] राकेश 'सोहम'

मीनाक्षी सुन्दरेश्वर मंदिर

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-हरिशंकर राढ़ी (लेखमाला की पिछली कड़ी में मदुराई और मीनाक्षी मंदिर का जो वर्णन मैंने किया था , उसे राष्ट्रीय सहारा दैनिक ने अपने 23 जनवरी के अंक में ज्यों का त्यों सम्पादकीय पृष्ठ पर अपने कॉलम ‘ ब्लॉग बोला ' में 'देवदर्शन और विशेष शुल्क‘ शीर्षक से छापा है।) मदुरै का मीनाक्षी सुंदरेश्वर मंदिर वास्तव में हिन्दू धर्म ही नहीं अपितु भारतीय संस्कृति का एक गौरव है। अंदर जाने पर जो अनुभूति होती है, उसकी तो बात ही अलग है; इसका बाहर का रूप ही अत्यन्त चित्ताकर्षक है और अपनी विशालता की गाथा स्वयं ही बयान कर देता है। वहीं से यह उत्कंठा जागृत हो जाती है कि कितनी जल्दी अंदर प्रवेश कर लें। यह मंदिर जितना भव्य बाहर से है , कहीं उससे ज्यादा अंदर से है। सामान्यतया मीनाक्षी मंदिर के नाम से विख्यात इस मंदिर का पूरा नाम मीनाक्षी सुंदरेश्वर मंदिर या मीनाक्षी अम्माँ मंदिर है।यह मंदिर भगवान शिव और देवी पार्वती जो मीनाक्षी के नाम से जानी जाती हैं, को समर्पित है। हिन्दू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव अत्यन्त सुन्दर रूप में देवी मीनाक्षी से विवाह की इच्छा से पृथ्वीलोक पधारे। देवी मीनाक्

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